क्यों न इस बार ये जिद मैं भी दिखाऊँ
गलती चाहे तेरी हो या मेरी हो
क्यों हर बात तेरी मान जाऊं,
क्यों न इस बार मनाने कि मेहनत तुझसे करवाऊं
समझदारी के बडे से पिटारे को
हमेशा मैं ही क्यों उठाऊं,
क्यों न इस बार थोडी समझदारी तुझसे भी उठवाऊं
गुस्सा नाराजगी हर बार तेरी,
समझना समझाना ये राग मेरी,
क्यों ना ये राग इस बार तुझसे गवाऊं
क्यों न इस बार ये जिद्द मैं भी दिखाऊं
मैं ही मानूं मैं ही समझूं,
तू बैठे चैन से हर उलझन में मैं ही उलझूं,
क्यों ना इस उलझन में तुझे भी उलझाऊं
हर बार की तरह इस बार भी मैं ही क्यों मान जाऊं
टूटे हुए रिश्ते को हर बार मैं ही बचाऊं,
रिश्ते तो दोनों के हैं तो हर बार इसे बचाऐ रखने के लिए
खुद को मैं ही क्यों समझाऊं
क्यों ना इस बार तुझे ये एहसास कराऊँ
हर बार जिद्द तेरी नहीं चलेगी,
इस बार ऐसी जिद्द मैं भी दिखाऊं।
Author : Rekha Tiwari
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